अतिरिक्त >> राग मिलावट मालकौंस राग मिलावट मालकौंसरवीन्द्र कालिया
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राग मिलावट मालकौंस पुस्तक का आई पैड संस्करण
आई पैड संस्करण
रात पौने नौ बजे समाचार से पूर्व विविध भारती की विज्ञापन सेवा द्वारा अक्सर एक जिंगल सुनाया जाता हैः ‘मिलावट, मिलावट, मिलावट, मिलावट।’ यह सुनने से ताल्लुक रखता है, लगता है कोई प्रेमाकुल नायिका सपनों में खोई हुई गुनगुना रही है ‘मुहब्बत, मुहब्बत, मुहब्बत।’ हिन्दी पत्रकारिता की भाषा से इस जिंगल की प्रशंसा में कहूँ तो इस जिंगल के संगीत निर्देशक, विजुअलाइजर, प्रस्तुतकर्ता और इससे संबद्ध मंत्रालय साधुवाद के पात्र हैं। जिंगल सुनकर फिल्म ‘महल’ में गाया गया लता मंगेशकर का गाना ‘आयेगा आयेगा, आयेगा, आनेवाला’ याद आ जाता है। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि इस जिंगल में एक सफल जिंगल के तमाम गुण हैं। सफल जिंगल वही माना जाता है जिसे सुनकर आप न केवल उसे गुनगुनाने लगें बल्कि उसमे प्रचारित दंतमंजन खरीद भी लायें।
इस दृष्टि से यह एक सफल जिंगल है। मेरे एक मित्र इसे अपने शास्त्रीय संगीत प्रेस के कारण ‘मिलावट की मालकौस’ कहते है। इसे सुनकर आप के भीतर ‘मिलावट की मारकौंस’ कहते हैं। इसे सुनकर आप के भीतर मिलावट करने की इच्छा पैदा होती है। आप जब तक समाचार सुनते हैं, आपके मस्तिष्क में प्रतिध्वनि गूंजती रहती है–मिलावट, मिलावट, मिलावट, मिलावट, मिलावट। इस जिंगल ने मुझे भी मिलावट की ओर प्रेरित किया। मगर एक लेखक क्या मिलावट कर सकता है? ज्यादा से ज्यादा स्याही में पानी मिला सकता है। व्यवस्था के पक्ष में दो चार पंक्तियाँ लिख हमेशा के लिए बदनाम हो सकता है। मगर व्यापारियों के लिए, उत्पादकों के लिए और उद्योग-पतियों के लिए, यह एक शुभ, उपयोगी एवं प्रेरक संदेश है। अब देश स्वतंत्र हो चुका है, स्वतंत्रता की रक्षा के लिए जेल जाने का भी कोई अवसर उत्पन्न नहीं हो रहा, अब केवल दूध से लेकर दारू तक में मिलावट करके देश की सेवा की जा सकती है। दिनरात निःस्वार्थ भाव से देश सेवा के पवित्र कार्य में संलग्न देशभक्त निष्ठापूर्वक अपना फर्ज सरंजाम दे रहे हैं। इस पुस्तक के कुछ पृष्ठ यहाँ देखें।
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